परंपरागत मार्केटिंग (ट्रेडिशनल) और डिजिटल मार्केटिंग में क्या अंतर है ?

परंपरागत मार्केटिंग एक सशक्त माध्यम है जिसके द्वारा एक सदी से भी अधिक समय से व्यापारी अपने व्यवसाय का प्रचार प्रसार करते आये हैं |

परंपरागत मार्केटिंग के लिए अख़बारों का, पम्फ्लेट्स का, होर्डिंग का, बैनर का, टेली-विज़न के विज्ञापनों का, रेडियो विज्ञापनों का, इवेंट्स करना और अन्य कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है जिसकी वजह से किसी भी व्यवसाय को एक अच्छी लोकप्रियता मिलती है | किसी भी ब्रांड को सफल होने के लिए अच्छी लोकप्रियता की आवश्यकता होती है |

परंपरागत मार्केटिंग हमेशा लोगो के एक समूह को निशाना बनती है जिसमे सभी वर्गों के लोग होते हैं | ऐसा माना जाता है की उस समूह में से कुछ प्रतिशत लोग विज्ञापन में रूचि दिखायेंगे और रूचि दिखने वाले लोगो में से कुछ प्रतिशत लोग सेल्स में वृद्धि कराएँगे |

१९९० के बाद इन्टरनेट का इस्तेमाल होने लगा | सन १९९९-२००० के करीब भारत में इसका प्रयोग बढने लगा और लोग मनोरंजन, ज्ञान अर्जित करने और कार्य को आसन बनाने के लिए इन्टरनेट का प्रयोग करने लगे | इन्टरनेट का प्रयोग बढ़ने के कारण इन्टरनेट एक ऐसा माध्यम बन गया जहा पे करोड़ों की संख्या में उपभोक्ता मौजूद होते हैं | किसी भी मार्केटिंग की तरह जहा पर उपभोकता होते हैं वहा पर सेल्स में वृद्धि होने का मौका होता है, इसीलिए इन्टरनेट पर मार्केटिंग करना एक प्रसिद्ध विकल्प बन गया जो की ट्रेडिशनल मार्केटिंग के साथ आसानी से किया जा सकता है | इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क का प्रयोग करके मार्केटिंग करने की प्रक्रिया को डिजिटल मार्केटिंग कहते हैं |

परंपरागत और डिजिटल मार्केटिंग में प्रयोग किये जाने वाले माध्यम में अंतर होता है | ट्रेडिशनल मार्केटिंग प्रिंट मीडिया और टीवी विज्ञापनों का प्रयोग करती है जिसके विपरीत डिजिटल मार्केटिंग में डिजिटल मीडिया – इमेज, टेक्स्ट कंटेंट, विडियो विज्ञापन इत्यादि का प्रयोग होता है |

परंपरागत मार्केटिंग में आंकलन करना मुश्किल होता है | सटीक तौर पे ये बताना मुश्किल होता है की कितने लोगो ने विज्ञापन देखा | डिजिटल मार्केटिंग में सटीक तौर पे ये एनालिटिक्स टूल के ज़रिये ये  बताया जा सकता है कि कितने लोगों ने विज्ञापन देखा, कहाँ से देखा और कितने प्रतिशत लोगो ने प्रतिक्रिया की जो की सेल्स में वृद्धि करने में सहायक हुई |

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